गौतम बुद्ध की 6 सीखें: जानिये चुप्पी का शक्तिशाली प्रभाव

जब भी कोई व्यक्ति गौतम बुद्ध के संघ में शामिल होता था तो बुद्ध उसे सबसे पहले शांत रहने के लिए कहते थे।

ध्यान की अवस्था में जाने से पहले उस भिक्षु को शांत रहना सिखाया जाता था। आज के दौर में हर तरफ शोर है। इसकी वजह से दिमाग में तनाव पैदा होना लाजमी है। 

ऐसे में अगर आप हर रोज कुछ देर मौन रहने का अभ्यास करते हैं तो इससे आपके तनाव पैदा होने वाले हार्मोन के लेवल में कमी आती है। इससे आपका दिमाग शांत होता है, गुस्सा नियंत्रित रहता है और तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन्स का लेवल घटता है। 

आज के इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि किन मौकों पर हमें शांत रहना है और किन मौकों पर हमें बोलना है और शांत रहने से हमारे अंदर क्या बदलाव आ सकता है। 

दोस्तो, संध्याकाल का समय था। गौतम बुद्ध अपने सभी शिष्यों को बुलाते हैं और कहते हैं कल सुबह सब लोग नदी में स्नान करने के बाद तुरंत हमारी कुटिया के सामने उपस्थित हो जाना। सभी इसी से हैरान रह जाते हैं कि हम लोगों ने कुछ गलती की है क्या? 

लेकिन कुछ लोग यह कहते हैं कि हो सकता है कि गुरूजी कल सुबह कुछ अच्छी बात बताने वाले हैं। सब लोग रात को सही समय पर सो जाते हैं और सुबह उठकर सभी लोग नदी में स्नान करने के बाद वापस गुरूजी के सामने उपस्थित हो जाते हैं। 

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गौतम बुद्ध क्या कहते हैं?

गौतम बुद्ध कहते हैं आज मैं तुम सबको चुप रहने के फायदे के बारे में बताऊंगा। बुद्ध कहते हैं ऐन मौके जहां पर चुप रहने से होता है लाभ और बोलने से नुकसान।

बुद्ध कहते हैं, अगर आप इन मौकों पर शांत हो गए यानी मौन हो गए तो आप जो चाहेंगे वही मिल जायेगा।

आपकी जिंदगी में चमत्कारिक बदलाव शुरू हो जाएंगे। जरूरत से ज्यादा बोलना या चुप रहना दोनों ही अच्छी बात नहीं हैं।

जैसे जरूरत से ज्यादा बारिश हो जाना या फिर धूप दोनों ही दिक्कत देती है, उसी तरह अनावश्यक बोलने से भी काफी नुकसान होता है।

गौतम बुद्ध की पहली सीख

गौतम बुद्ध कहते हैं कि पहला ऐसा मौका जहां पर व्यक्ति को चुप रहना चाहिए। बिना तथ्य के न बोलें।

गौतम बुद्ध ने कहा, अगर आपके पास कोई तथ्य नहीं है तो वहां चुप रहने में ही भलाई है। चुप बैठने से दिमाग में नई कोशिकाओं का निर्माण होता है और इससे ज्ञान की वृद्धि होती है।

बोलने में भलाई वहीं है, जहां आपको किसी चीज के बारे में पूरा ज्ञान हो। अगर आप बिना तथ्य के कहीं बोलते हैं या फिर बेवजह बोलते हैं तो आपका वहां मजाक भी बन सकता है। 

अगर आपके पास पर्याप्त जानकारी नहीं है, ऐसी जगह पर बोलने से आपका मजाक तो बनी रहेगी। साथ ही साथ लोगों का भरोसा भी आपसे उठने लगेगा।

इसलिए ऐसी जगह पर शांत रहो जहां तुम्हें पता न हो कि क्या बोलना है क्या नहीं। कई बार कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर जगह अपनी उपस्थिति बताने लगते हैं। 

उन्हें पता नहीं होता है कि हमें क्या बोलना है, लेकिन फिर भी बोलते जाते हैं और फिर बाद में दूसरे लोग उनके जाने के बाद उनका मजाक उड़ाते हैं।

जब तक आपको उस तथ्य के बारे में अच्छा ज्ञान नहीं है, उसके बारे में पता नहीं है तो वहां चुप रहना ही ज्यादा समझदारी है। बुद्ध ने कहा,

गौतम बुद्ध की दूसरी सीख

दूसरा ऐसा मौका जहां पर व्यक्ति को चुप रहना चाहिए। शब्दों से न पहुंचे ठेस। अगर आपके शब्द किसी को मानसिक ठेस पहुंचा रहे हैं तो वहां चुप हो जाना चाहिए। 

कमजोर व्यक्ति के बारे में कुछ भी बोलकर आप महान नहीं बन सकते हैं। महान आप किसी कमजोर का साथ देने में बनेंगे। कई बार होता है कुछ लोग अपने से छोटे व्यक्ति को भला बुरा कहते रहते हैं। 

सामने वाला इंसान तो कद से आपसे छोटा है। वह आपको कुछ नहीं बोलेगा, लेकिन आप उसकी नजरों में गिरते चले जाएंगे। हो सकता है कि कल वह भी आपसे पद में बड़ा हो जाए। 

पद में आपसे जब वह बड़ा हो जाएगा तो आज जो रवैया आपका उसके साथ है, आने वाले समय में वह भी आपके साथ वही करेगा। आप किसी को नीचा दिखाकर बड़ा नहीं बन सकते हैं। 

बड़ा बनना है तो अपने से छोटे लोगों का इज्जत भी करना सीखें और साथ ही साथ बड़े लोगों का भी सम्मान करना चाहिए।

लोगों को लगता है कि अगर वह अकड़कर बोलेंगे और सामने वाले को नीचा गिराने की कोशिश करेंगे तो वह बड़े बन जाएंगे। तो यह उन सबकी भूल है। बड़े होने की बजाय आप उनकी नजरों में गिरते चले जाएंगे। 

गौतम बुद्ध ने आगे कहा, इसलिए शिष्यों, तुम सब जब भी बोलना, आदर भाव से बोलना ताकि तुम्हारी बात लोगों को अच्छी लगे।

बोलने में भाई बहन, माता पिता, मित्र इत्यादि संबोधन शब्दों का इस्तेमाल जरूर करना। इससे तुम्हारी मान प्रतिष्ठा तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ लोगों की नजरों में तुम समझदार व्यक्ति बनते जाओगे।

गौतम बुद्ध की तीसरी सीख

बुद्ध ने आगे कहा, तीसरा मौका जहां पर व्यक्ति को चुप रहने में ही भलाई है। क्रोध या घृणा करने वाले लोग जब कोई अपना या सगा संबंधी आप पर

क्रोध कर रहा हो, आपका अपमान कर रहा हो तो आपको उस वक्त चुप रहना चाहिए ताकि सामने वाले का गुब्बारा पूरी तरह से फट जाए।

आप यदि सही हैं तो उसे कतई माफीनामा गए और चुप रहकर ही सही समय का इंतजार करें। वह खुद आपसे माफी मांग लेगा। 

जब उसे अपनी गलती का एहसास हो जाएगा। बुद्ध आगे कहते हैं कि अगर आपका कोई सगा संबंधी आप पर क्रोध कर रहा हो और आप उस समय शांत हैं तो यह आदर सम्मान देने की निशानी होती है।

इससे न कोई छोटा होता है और न ही बड़ा। अगर आपको क्रोध आ रहा है तो आप या तो वहां से किसी का अनादर किए बिना चले जाएं या फिर चुप रहें।

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क्रोध करने से आपके रिश्ते खराब होंगे। क्रोध करने से हमेशा क्रोध करने वाले। व्यक्ति का ही बुरा होता है।

बुद्ध आगे कहते हैं कि एक बार की बात है एक सांप जंगल से भागते हुए किसी राजा के घर में पहुँच गया।

लोगों ने छेड़खानी की तो वह बहुत ही गुस्सा हो गया जिससे घर में जो तलवार पड़ी हुई थी उसी को लपेटकर कसने लगा और धीरे धीरे उसका पूरा शरीर कट गया। 

यह गुस्सा उसे खा गया। ठीक उसी प्रकार हमारा गुस्सा भी हमारे शरीर को तलवार की भाँती काटता रहता है।

गुस्सा ध्यान से खत्म होता है। प्रतिदिन अगर आप ध्यान की मुद्रा में बैठे हैं तो आपका गुस्सा आपके नियंत्रण में रहेगा। बुद्ध आगे कहते हैं कि यह तो यह तरीका है कि आप प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करें।

इससे आपके शरीर में जो हार्मोन्स गुस्से को बढ़ावा देते हैं वह सब तुम्हारे नियंत्रण में रहेंगे जिससे शरीर गुस्से पर आसानी तुम्हारा से काबू पा लेगा।

लेकिन एक तरीका यह भी है कि जब भी आपको गुस्सा आए तो आप यह समझने का प्रयास करो कि क्या मेरा गुस्सा जायज है या नहीं।

हमें वहां पर बोलना चाहिए कि नहीं। जब आप खुद इस बात का आंकलन लगा पाएंगे तो आपको खुद पता चल जायेगा कि हमें गुस्सा करना चाहिए या नहीं। 

फिर भी आपको गुस्सा आ रहा है तो आप वहां से हटने का प्रयास करें। वहां से दूर चले जाएं। धीरे धीरे समय के साथ आपका दिमाग शांत हो जाएगा।

⇒ गौतम बुद्ध की चौथी सीख

बुद्ध ने कहा चौथा ऐसा मौका जहां पर इंसान को बहुत ही समझदारी के साथ काम लेना चाहिए। वहां पर आपको चुप रहना ही चाहिए जहां पर उस मुद्दे से आपका कोई संबंध ना हो। 

अगर आपका किसी मुद्दे से कोई संबंध ना हो तो वहां आपका चुप रहना बनता है। बिना किसी वजह अगर आप दूसरे के मुद्दे पर बोलेंगे तो यह आपके लिए अनिष्टकारी होगा। इसमें केवल और केवल आपका ही नुकसान है।

जल्द ही आप किसी भी किसी दो लोगों के बीच हो रहे विवाद में जल्दी अपनी टांग न डालें। अगर सामने वाला आपको बुला रहा है अपना झगड़ा शांत करवाने के लिए तो ही आप वहां पर जाएं। 

किसी की व्यक्तिगत जिंदगी में दखलअंदाजी नहीं देनी चाहिए। जब तक कि वह व्यक्ति आपको नहीं बुलाता है।

अपने झगड़े को शांत करवाने के लिए कुछ लोग फालतू में दूसरे के विवाद में कूद पड़ते हैं। इससे उनके मान सम्मान, मर्यादा पर लोग उंगली उठाने लगते हैं।

⇒ गौतम बुद्ध की पांचवी सीख

गौतम बुद्ध कहते हैं कि इन मौकों में पांचवां ऐसा मौका जहां पर व्यक्ति को बहुत ही समझदारी के साथ चुप रहना चाहिए। आपके शब्दों से किसी मित्र को हानि न पहुंचे। अगर

आपके शब्द सामने वाले के परिवार या मित्रों की प्रतिष्ठा के बारे में बुरी झलक दिखा रहे हैं तो आपको चुप रहना चाहिए। किसी के परिवार या फिर मित्र के बारे में बुरा बोलने से केवल आप ही बुरे बनेंगे।

जो चीज आसानी से खत्म की जा सकती है, उसे अपने शब्दों से बड़ा न करें। बिना चिल्लाए बात करने का प्रयास करते रहना चाहिए।

अगर आप बिना चिल्लाए कोई बात नहीं कह सकते तो आपका चुप रहने में ही भलाई है।

किसी पर चिल्लाने से आपके व्यवहार के बारे में पता चलता है। ज्यादा बोलने से चीजें हमेशा खराब ही होती हैं।

कई बार कुछ रिश्ते ज्यादा तेज बोलने की वजह से टूट जाते हैं। इसलिए अपनी आवाज में मीठापन लाएं।

आपके शब्दों से आपके दोस्त को हानि नहीं पहुंचनी चाहिए। कभी कभी दोस्तों के जब हम मजाक हैं तो रहें कि आपके शब्दों से किसी का अनादर न हो। मजाक को भी हमेशा शब्दों के मायने में ही रखें। 

जहां किसी को शब्दों से चोट लगे, वहां चुप हो जाएं। ज्यादा बोलने से हमेशा नुकसान ही होता है।

किसी और की प्रतिष्ठा को अपने शब्दों के माध्यम से उसे हानि नहीं पहुंचानी चाहिए। यदि आपके शब्दों से किसी और की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच रही है तो वहां आपको चुप हो जाना चाहिए। 

जब कोई व्यक्ति आपके सामने नहीं है तो आप उस व्यक्ति के बारे में बुरे शब्द किसी तीसरे व्यक्ति के सामने न बोलें।

⇒ गौतम बुद्ध की छठवी सीख

बुद्ध कहते हैं छठा मौका जहां पर व्यक्ति को चुप रहना चाहिए।जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की बुराई कर रहा हो, तो हमें चुप रहकर बस सुनना चाहिए। 

ऐसा इसलिए है क्योंकि बुराई करने वाला व्यक्ति आमतौर पर अपनी भावनाओं से नियंत्रित होता है। वह गुस्सा, क्रोध, या ईर्ष्या जैसी भावनाओं में डूबा होता है।

इन भावनाओं के प्रभाव में, वह अक्सर दूसरों के बारे में झूठ बोलता है, उनकी आलोचना करता है, या उन्हें बदनाम करता है।

यदि हम इस समय बुराई करने वाले व्यक्ति को जवाब देते हैं, तो हम भी उसकी भावनाओं से प्रभावित हो सकते हैं। हम भी गुस्सा, क्रोध, या ईर्ष्या महसूस कर सकते हैं।

इससे हमारे बीच झगड़ा या विवाद हो सकता है। इससे न तो बुराई करने वाला व्यक्ति और न ही जिसकी बुराई की जा रही है, उसे कोई फायदा होगा।

इसलिए, सबसे अच्छा तरीका है कि हम चुप रहें और बस सुनें। इससे हम बुराई करने वाले व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मौका देंगे।

जब वह अपनी बात कह चुका होगा, तो हम उसे समझाने की कोशिश कर सकते हैं कि उसकी बातें गलत हैं। हम उसे बता सकते हैं कि दूसरों की बुराई करना उचित नहीं है।

गौतम बुद्ध का यह सत्य हमें यह भी सिखाता है कि हमें दूसरों की बुराई करने से बचना चाहिए। हमें दूसरों के बारे में हमेशा अच्छी बातें सोचनी चाहिए। हमें दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।

यदि हम सभी इस सत्य का पालन करें, तो हमारा समाज एक अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज बन सकता है।

यदि आपको हमारी दी हुई जानकारी पसंद आई तो आप हमारे और भी ब्लॉग पढ़ सकते हैं हम आपकी ऐसी और भी जानकारी Gyan Ki Baatein इस वेबसाइट पर देते रहेंगे धन्यवाद

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