Din Rat Kaise Hota Hai ? – दिन रात कैसे होते हैं ?

Din Rat Kaise Hota Hai ? दोस्तों आप अपनी रोज की दिनचर्या में कई ऐसी चीजों को देखते हैं जिनका जवाब है कई लोगों को पता नहीं होता। दिन और रात का यह समय हमारी पूरी दिनचर्या में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है।

रात के समय सब लोग सो जाते हैं और दिन के समय सब काम करते हैं। लेकिन सब कुछ परफेक्ट पीरियड में कैसे हो रहा है? 

आखिर Din rat kaise hota hai ऐसा क्यों नहीं होता कि पहले दो दिन हो जाएं, फिर दो रातें हो जाएं। दिन और रात छोटे बड़े क्यों होते हैं? हर साल मौसम के अंदर बिल्कुल फिक्स समय में सबकुछ कैसे होता है?

सर्दी, गर्मी, वर्षा की ऋतु समय पर कैसे आती है और पृथ्वी पर ऐसी भी कई जगह मौजूद हैं जहां पर छह महीने दिन और छह महीने रात ही रहती है। आज इस समय के जितने भी सवाल आपके दिमाग में चक्कर लगा रहे हैं उनका जवाब है बड़ी सटीकता से यह आपको देने वाले हैं। 

दोस्तों दिन रात कैसे होते हैं यह सवाल बहुत ज्यादा इंटरेस्टिंग है। सबसे पहले आपको बताते हैं कि हमारी पृथ्वी ब्रह्मांड के अंदर एक गोले के रूप में लटकी हुई है जो दूर से सूरज के गुरुत्वाकर्षण के अंदर बंधी रह कर सूरज का चक्कर लगाती है।

पृथ्वी के पास अपना खुद का कोई प्रकाश नहीं है। जो भी उजाला पृथ्वी पर आता है वह सूरज की और से आता है। इसलिए तो सूरज को पृथ्वी पर लोक देवता का दर्जा भी दिया जाता है।

सूरज की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन और जो भी पेड़ पौधों की प्रजातियां मौजूद हैं वो सब सूरज की देन हैं। अगर सूरज नहीं होता तो आज आप पानी पीते हैं वो भी नहीं मिलता क्योंकि सूरज की गर्मी के बगैर पानी बर्फ के रूप में जम जाता तो फिर आप जीवन की कल्पना तो छोड़ ही दीजिए। 

अब हम अपने मेन सवाल पर आते हैं कि Din rat kaise hota hai  ? तो इस सवाल का सिंपल सा जवाब है कि पृथ्वी का जो आधा भाग सूरज की ओर होता है, जिस पर सूरज की रोशनी पड़ती है, उस साइड दिन रहता है और जो भाग सूरज के बैकसाइड में पड़ता है, उस पर सूरज का प्रकाश नहीं जा पाता। 

इस वजह से उस वाले भाग में रात होती है। अब दूसरा जो सबसे इंटरेस्टिंग सवाल है कि आखिर दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन क्यों होता है तो पृथ्वी अपने अक्ष यानी धुरी पर घूमती है।

अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो इसे परिभ्रमण काल कहा जाता है और अपनी खुद की धुरी पर एक राउंड पूरा करने में पृथ्वी 24 घंटे का समय लेती है। 

दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन क्यों होता है?

दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन क्यों होता है तो पृथ्वी अपने अक्ष यानी धुरी पर घूमती है। 24 घंटे के समय अंतराल में पृथ्वी का कोई भी एक भाग हमेशा सूरज की ओर से गुजर रहा होता है।

इस कारण सूरज की रोशनी इस भाग में पड़ती है। तो इस वजह से दिन रहता है और पृथ्वी का भाग है जो पीछे की साइड रह जाता है वह भाग अंधेरे में रहने के कारण है। यहां पर रात होती है। 

इस प्रकार परिभ्रमण के एक चक्र में लगभग आधे समय के लिए दिन होता है और आधे समय के लिए रात।

तब दूसरा चक्कर आरंभ हो जाता है और इस प्रकार रात के पश्चात दिन है और दिन के पश्चात रात रहती है। 24 घंटे के एक दिन रात को साधारण बोलचाल में एक दिन कहा जाता है।

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दिन रात छोटे बड़े क्यों होते हैं?

अब आपके दिमाग में जो तीसरा सवाल आ रहा है कि दिन रात छोटे बड़े क्यों होते हैं? मैं आपको जो बात बता रहा हूं उसे बड़े ध्यान से समझिएगा।

अब आपके दिमाग में यह पूरी तरह से कॉन्सेप्ट क्लियर हो जाएगा। यदि पृथ्वी का अक्ष पृथ्वी के कक्ष यानी सूरज के चारों ओर चक्कर लगाने वाले मार्ग पर लंबवत है, मतलब की सीधा होता है तो पृथ्वी पर है। 

यह प्रत्येक स्थान पर दिन रात बराबर होते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। यहां पर है पृथ्वी का अक्ष पृथ्वी के कक्षा के साथ है। 66 बटे दो डिग्री कोण बनाए रखता है। और पूरे साल में परिक्रमण में झुकाव इस प्रकार रहता है। अब इस वजह से होता क्या है कि 21 जून को उत्तर ध्रुव है।

सूर्य की ओर सबसे अधिक चुका होता है, जिस वजह से जून में उत्तरी गोलार्ध में दिन बड़े और रात छोटी होती हैं और इसके उलट है दक्षिणी गोलार्ध में दिन छोटे हो जाते हैं।

और रातें बड़ी हो जाती हैं और 22 सितंबर को दक्षिणी ध्रुव सूर्य की सबसे अधिक ओर झुका रहता है, जिस वजह से उत्तरी गोलार्ध में दिन छोटे और रात बड़ी और दक्षिणी गोलार्ध में दिन बड़े और रात छोटे होते हैं। 

21 मार्च और 23 सितंबर को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का सूर्य के प्रति झुकाव एक समान होता है। इसका परिणाम यह होता है कि इस दिन और रात दोनों बराबर होते हैं।

अब बात आती है पृथ्वी के ध्रुवीय इलाकों की। जैसा कि मैंने वीडियो में पहले बताया, छह महीने तक दिन और छह महीने तक रात है। 

पृथ्वी के ध्रुवीय इलाकों में रहती है। उत्तरी ध्रुव 21 मार्च से 23 सितंबर तक लगातार सूर्य के साथ। रहता है और दक्षिण ध्रुव है। 23 सितंबर से 21 मार्च तक विषुवत वृत्त पर है। दिन रात वर्षभर समान होते हैं और मौसम भी वर्षभर एक जैसा ही रहता है। अब बात आती है और एक सवाल की।

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पृथ्वी पर मौसम कैसे बदलते हैं?

साल में आखिर कैसे वर्षा, सर्दी, गर्मी का मौसम आता है? इस सवाल का जवाब छुपा है पृथ्वी के द्वारा सूर्य का चक्कर काटने के एक राउंड में।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमण पूरे एक वर्ष में पूरा करती है यानि एक चक्कर पूरा करने में 365 दिनों का समय लग जाता है। इसे ही एक साल कहा जाता है। 

इस परिक्रमण में अक्ष का झुकाव सदा अपने समांतर रहता है। 21 मार्च को सूर्य विषुवत वृत्त पर लम्बवत चमकता है और 21 जून को साढ़े 23 डिग्री उत्तर में कर्क वृत्त पर सीधा चमकता है।

23 सितम्बर को विषुवत वृत्त पर सूर्य की किरणें लंबवत पड़ती हैं और 22 सितंबर को साढ़े तेजी से दक्षिण में मकर वृत्त पर इसका परिक्रमण यह होता है कि उत्तरी गोलार्ध में मार्च में बसंत ऋतु होती है।

जून में ग्रीष्म ऋतु, सितंबर में शरद ऋतु और दिसंबर में शीत ऋतु होती है। दक्षिण गोलार्ध में ऋतुएं इसके विपरीत होती हैं।

गर्मी के मौसम में दिन लंबे होते हैं और रात के समय में छोटी होती हैं। सर्दी के ऋतु में दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी हो जाती हैं और बसंत और शरद ऋतु में दिन रात बराबर होते हैं और मौसम सुहावना होता है। 

दोपहर को सूर्य की किरणें लंबवत पड़ती हैं परंतु प्रातः और सांय के समय किरणें तिरछी होती हैं। यही कारण है कि दोपहर को हमारी छाया छोटी होती है परंतु सवेरे और शाम के समय बड़ी होती है। इस प्रकार ग्रीष्म ऋतु में सूर्य दोपहर के समय शीत ऋतु की अपेक्षा अधिक लम्बवत् होता है। 

अतः ग्रीष्म ऋतु में सायं छोटे होते हैं और शीत ऋतु में लंबे होते हैं। एक और बात ध्यान देने योग्य है। सूर्योदय के समय गर्मी हल्की होती है। ज्यों ज्यों सूर्य आकाश में ऊपर उठता है, गर्मी बढ़ती जाती है। दोपहर के समय सूर्य सबसे अधिक ऊंचाई पर आ चुका होता है और फिर ढलने लगता है। 

परंतु गर्मी अभी भी दो घंटे बढ़ती जाती है। कारण यह है कि सवेरे से दोपहर तक धूप की बहुत सी गर्मी पृथ्वी में एकत्रित हो चुकी होती है और दोपहर के पश्चात भी सूर्य अभी दो घंटे लग गए सीधा ही चमकता रहता है जिससे पर्याप्त मात्रा में और अधिक गर्मी बढ़ती जाती है। फिर सूर्य और अधिक ढल जाता है तब धूप में बहुत कम गर्मी रह जाती है।

इस समय इसे सांयकाल को मौसम ठंडा हो जाता है और रात को भी आधी रात के पश्चात आधी रात की अपेक्षा अधिक सर्दी हो जाती है।

ठीक इसी प्रकार ऋतु के विषय में होता है। हमारे यहां जून में सबसे अधिक गर्मी न होकर जुलाई का मास सबसे अधिक गरम होता है और शीतकाल में दिसंबर की अपेक्षा जनवरी में सर्दी अधिक पड़ती है।

दोस्तों यह था पृथ्वी पर दिन और रात बदलने का फॉर्मुला और इस तरह पृथ्वी पर ऋतु बदलती हैं। इसमें कुछ ज्यादा बड़ा विज्ञान नहीं है। सिंपल बातें हैं।

उम्मीद करते हैं आपको समझ में आ गए होंगे। अगर जानकारीअच्छी  लगी तो Gyan Ki Baatein मैं हमारे और भी ब्लॉग पढ़ें हमने बहुत रिसर्च करके आपके लिए जानकारी लिखी है और अपने दोस्तों को शेयर करना ना भूले धन्यवाद

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