पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई: 2024 की विशेषज्ञों की नई जाँच?
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में इंसान शुरू से ही जिज्ञासु रहा है। अब ये इंसान की जिज्ञासा ही है कि प्राचीन काल से अब तक धरती पर क्या क्या चीजें हुई, वो लगभग जान चुका है। इसी नेचर की वजह से आकाश गंगा तक की घटनाओं को रोज डिटेक्ट करने में लगा है।
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Toggleअब ये जिज्ञासा का ही रिजल्ट था कि एक फल गिरने के बाद गुरुत्वाकर्षण के बारे में पता लगा लिया गया। रहस्यमयी पृथ्वी के बारे में मनुष्य अबतक काफी कुछ जान चुका है फिर भी अभी कुछ शेष है। आज इस ब्लॉग में हम पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ का खुलासा तो करेंगे लेकिन साथ ही इसमें आए हर टर्निंग प्वाइंट के बारे में भी आपको बताएंगे।
अब अपनी पृथ्वी की गहराई जानना चाहते हैं और जानना चाहते हैं कि पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ। जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी ही सौरमंडल का एकमात्र ग्रह है जिस पर वायुमंडल और जल दोनों प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
जिसकी वजह से यहां जीवन है। पृथ्वी की इन्हीं खूबियों के चलते इस ग्रह पर अलग अलग तरह के जीवों का जन्म हुआ है। पृथ्वी का जन्म, उसकी उत्पत्ति और पृथ्वी की संरचना के विषय में प्राचीन काल से ही मनुष्यों ने कई तरह के अनुमान लगाए हैं।
आधुनिक काल के वैज्ञानिकों ने रेडियोकार्बन डेटिंग से यह साफ कर दिया कि इसकी उम्र तकरीबन 4.6 अरब साल है। इसके लिए ऑस्ट्रेलिया में मिली अब तक की सबसे पुरानी एक झिर गौन चट्टान की रेडियोकार्बन डेटिंग की गई थी। वैज्ञानिकों और उसके विशेषज्ञों ने पृथ्वी की उम्र का तो पता लगा लिया, पर क्या आप यह जानते हैं कि पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?
दरअसल, पृथ्वी की उत्पत्ति काफी रहस्यमयी है, जिसके बारे में परत दर परत जानना होगा, क्योंकि इसके निर्माण के पहले और साथ साथ कई भयंकर एस्ट्रोनॉमिकल घटनाएं भी हुई थी।
साथ ही आकाश गंगा में भी काफी कुछ बदलाव आए थे क्योंकि पृथ्वी सौरमंडल का ही एक हिस्सा है। इसीलिए पृथ्वी के निर्माण के बारे में जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि हमारे सौरमंडल का निर्माण कैसे हुआ।
सौरमंडल का निर्माण कैसे हुआ?
दरअसल, सौरमंडल का निर्माण पृथ्वी के जन्म से बहुत पहले हुआ है। इसीलिए सौर मंडल के जन्म को जाने बिना पृथ्वी के जन्म के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। सौरमंडल की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों की अलग अलग राय है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि सौरमंडल के निर्माण के पहले न तो कोई ग्रह था और न ही सूर्य। इसमें केवल धूल ही धूल थी। इस धूल में हाइड्रोजन और हीलियम मौजूद थे। धूल और गैस के बादलों को ही निहारिका या नेबुला कहा जाता है।
सौरमंडल का निर्माण इसी नेबुला गैस के बादल के अंदर विस्फोट होने की वजह से हुआ है। इस विस्फोट के बाद नेबुला ठहरने लगा और उसके अंदर मौजूद धूल और गैस धीरे धीरे अलग होते चले गए। उसमें बादलों वाली धूल भी काफी तेजी से घूम रही थी।
गुरुत्वाकर्षण की वजह से बादलों का अधिकांश हिस्सा केंद्र की ओर दबने और इकट्ठा होने लगे। वहीं न्यूक्लियर फ्यूजन की वजह से इस केंद्र में काफी गर्मी पैदा होने लगी, जिसकी वजह से सूर्य की उत्पत्ति हुई।
वहीं चारों ओर घूमने वाले धूल कण, गुरुत्वाकर्षण की वजह से एक दूसरे से जुड़ने लगे। इस जुड़ाव की वजह से इनके आकार भी बड़े होने लगे, जिसके बाद ये ग्रहों के रूप में तब्दील हो गए। इस सोलर सिस्टम की खोज 1543 ईस्वी में निकोलस कोपरनिकस ने की थी।
कोपरनिकस ने ही बताया कि सूर्य ब्रम्हांड का हिस्सा है न कि पृथ्वी का। उसके बाद 17वीं शताब्दी में गैलीलियो और जॉन केपलर ने पता लगाया कि पृथ्वी ही सूर्य के चारों ओर घूमती है। इससे पहले यह माना जाता था कि पृथ्वी ही ब्रह्मांड का केंद्र है, जहां सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं।
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?
सौर मंडल के बाद पृथ्वी की उत्पत्ति हुई थी। पृथ्वी की उत्पत्ति का रहस्य अपने आप में। प्याज के छिलके की तरह है, जिसे हमें एक एक कर उतारने जा रहे हैं। पृथ्वी तकरीबन साढ़े 4 अरब साल पुरानी है।
सौरमंडल के नेबुला में विस्फोट की वजह से धूल कणों के एक जगह इकट्ठे होने से जिन ग्रहों का निर्माण शुरू हुआ था, उनमें से पृथ्वी भी एक ग्रह थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक नेबुला विस्फोट के बाद ग्रैविटी फोर्स की वजह से गैलेक्सी बनी होंगी, जिसके भीतर सबसे पहले तारे बने।
इन तारों के सेंटर में कंडेंस से क्रोड बना। इसके बाद सूर्य के चारों तरफ गैस और धूल कणों की घूमती हुई तश्तरी यानी रोटेटिंग डिस्क बनी। इस तरह सूर्य का निर्माण हुआ। सूर्य भी एक तारा ही है।
यह मिल्की वे नाम के आकाशगंगा में स्थित है। सूर्य बनने के बाद उसके चारों ओर बने गैस के बादलों का दबाव बनना शुरू हुआ, जिसमें गुरुत्वाकर्षण बल के जरिए पदार्थों के छोटे छोटे गोले बनने शुरू हुए।
ये छोटे छोटे गोले आपसी आकर्षण बल के जरिए खगोलीय पिंडों में बदल गए, जिन्हें ग्रहों अणु यानी प्लैनेट सिम्बल कहा जाता है या डिस्क में इकट्ठे हो चुके छोटे छोटे पदार्थ बाद में प्रोटो प्लैनेट या प्लैनेट सिम्बल्स में बदल गए।
इन प्रोटो प्लैनेट्स का निर्माण मार्स के सेंटर की ओर। ग्रोथ होने की वजह से हुआ। पृथ्वी की उत्पत्ति की अंतिम अवस्था में इन छोटे छोटे प्लैनेट सिम्बल या प्रोटो ग्रहों के आपस में जुड़ने की वजह से एक बड़े पिंड का निर्माण हुआ, जिसे पृथ्वी कहा गया।
पृथ्वी की उत्पत्ति में सौर वायु यानी सोलर विंड का बड़ा योगदान है, क्योंकि जैसे जैसे सूर्य के केंद्र में हाइड्रोजन गैस इकट्ठा होती गई, वैसे वैसे सूर्य का टेम्परेचर मास बढ़ता गया। इन दोनों के दबाव सूर्य के केंद्र में इतने बढ़े कि हाइड्रोजन न्यूक्लियस से मिलकर हीलियम बनाने लगे। यानी हाइड्रोजन गैस न्यूक्लियर रिएक्शन के जरिए हीलियम गैस में बदलने लगे।
इस प्रक्रिया में काफी अधिक एनर्जी पैदा हुई और सूर्य आग के गोले की तरह चमकने लगा। फिर सूर्य के निकलने से तेज सौर वायु ने भीतरी ग्रहों के निर्माण के बाद बाकी बचे धूल और दूसरे पदार्थों को उड़ा दिया।
इसके बाद इनर प्लैनेट में केवल ठोस पिंड ही बचे। इन्हीं भीतरी ग्रहों में से एक पृथ्वी पर था। पृथ्वी के साथ ही मंगल, बुध और शुक्र ग्रहों का भी निर्माण हुआ। पृथ्वी की तरह ही ठोस चट्टानों और धातुओं से बने होने के कारण इन सभी ग्रहों को टेरेस्ट्रियल प्लैनेट भी कहा जाता है।
इसके अलावा सभी ग्रह बाहरी यानी आउटर प्लैनेट्स कहलाते हैं। ये सभी गैसों से बने रहे हैं, जिन्हें जीओवी इन प्लैनेट कहा जाता है, क्योंकि सौर वायु ग्रहों से कमजोर पड़ी। इसीलिए इन ग्रहों से विशाल गैसों को हटा नहीं सकी।
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पृथ्वी के निर्माण के साथ इसकी बनावट भी काफी रहस्यमयी है, जो परत दर परत है। जब पृथ्वी की उत्पत्ति हुई थी तब ये काफी गर्म और चट्टानों से बनी थी। शुरुआत में इसके वायुमंडल में केवल हाइड्रोजन और कुछ मात्रा में हीलियम गैस थी।
दरअसल, शुरुआत में पृथ्वी काफी गर्म थी। इसकी वजह से ही आंशिक रूप से द्रव्य यानी तरल रूप में स्थित रही, जिसकी वजह से इसमें मौजूद लोहे जैसे भारी पदार्थ पृथ्वी के केंद्र में चले गए और हल्के पदार्थ इसकी सतह पर ही रह गए।
पदार्थों के अलग अलग होने की इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने इसे डिफरेंशियल शन कहा। अब आते हैं पृथ्वी के उस सबसे बड़े रहस्य पर जिसकी चर्चा हमने ब्लॉग के शुरू में की थी। आप यह जानकर चकित रह जाएंगे कि इंसानों की तरह पृथ्वी की भी हार्टबीट और नब्ज होती है।
ऐसा हम नहीं, बल्कि इस पर शोध कर चुके वैज्ञानिक कहते हैं। दरअसल, न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट धरती के रहस्यों की खोज में लगी थी। इस रिसर्च में हैरान कर देने वाली जानकारी मिली कि पृथ्वी की भी अपनी एक हार्टबीट और नब्ज है जो 27.5 मिलेनियर की हो चुकी है।
इस स्टडी से यह भी पता चला है कि जब भी इसकी हार्टबीट एक्टिव होती है तब पृथ्वी पर प्रलय आता है। इसके मुताबिक अब अगली बार पृथ्वी का दिल 2 करोड़ साल बाद धड़केगा। जिसका मतलब ये हुआ कि 2 करोड़ साल बाद पृथ्वी पर फिर से प्रलय आएगा।
यह बड़ी आपदा उस वक्त आएगी जब धरती का दिल धड़कने के साथ उसकी जियोलॉजिकल पल्स दौड़ने लगेगी। इस शोध की रिपोर्ट की मानें तो जब भी धरती का दिल धड़कता है यानी वह सांस लेती है तो समुद्री और गैर समुद्री जीवों का सामूहिक संहार होता है।
उस समय सुनामी जैसी भयानक घटनाएं होती हैं। महाद्वीप तबाह हो जाते हैं। कुछ महाद्वीप समुद्र में समा जाते हैं और कुछ समुद्र से बाहर आ जाते हैं। इतना ही नहीं, पृथ्वी के चुंबकीय शक्ति में चेंज आ जाते हैं।
यही वह वक्त होता है जब टेक्नो टिक प्लेट्स आपस में टकराकर अलग हो जाते हैं। पर ये सारी घटनाएं कुछ पल के लिए ही होती हैं जो कि पृथ्वी को पूरी तरह से तहस नहस करके एक नए रूप में बदल देती हैं। अब यह दुनिया कैसे बनी? पृथ्वी का जन्म कैसे हुआ?
आशा करते हैं Gyan Ki Baatein मैं आपको यह जानकारी से समझ आ आई होगी। आप पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में क्या सोचते हैं, आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
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