दोस्तो आपने एक बात तो बहुत बार सुनी होगी कि अंतरिक्ष में एक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन है और उसमें वैज्ञानिक रहते हैं और समय समय पर वो धरती पर आते भी रहते हैं और दूसरे दल को वहां पर भेजते भी रहते हैं।
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Toggleदोस्तों अक्सर हमारे दिमाग में यह सवाल जरूर आता है कि अंतरिक्ष से स्पेस स्टेशन गिरते क्यों नहीं? वैसे सैकड़ों सालों से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए एक उत्सुकता का केंद्र रहा है।
उसके रहस्य और संभावनाओं को जानने की चाह वैज्ञानिकों की दुनिया में नए आसमान को स्थापित करती है।
19 अप्रैल 1971 में सोवियत संघ द्वारा भेजा गया दुनिया का पहला स्पेस स्टेशन सैल्यूट वान से लेकर आज दो हज़ार 21 तक कुल 12 स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में भेजे गए।
तो फिर आखिर तब से लेकर अब तक घूम रहे अन्तरिक्ष से स्पेस स्टेशन गिरते क्यों नहीं?
स्पेस स्टेशन क्या होते हैं और इन्हें क्यों बनाया जाता है?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले आपको यह पता होना चाहिए कि स्पेस स्टेशन क्या होते हैं और इन्हें क्यों बनाया जाता है।
इसके बाद हम जानेंगे इन्हें अंतरिक्ष में कैसे भेजा जाता है और अंतरिक्ष में भेजने के बाद यह स्पेस स्टेशन अपनी ऑर्बिट में कैसे बने रहते हैं और ये धरती पर क्यों नहीं गिरते। धरती का गुरुत्वाकर्षण बल इन पर काम क्यों नहीं करता?
दोस्तों, कई दशकों पहले स्पेस स्टेशन बनाने के विचार को महज एक साइंस फिक्शन माना जाता था और ये केवल स्पेस लवर की कल्पना तक सीमित था।
जब तक 1940 के दशक में स्पष्ट नहीं हो गया कि इस तरह के स्ट्रक्चर का निर्माण विज्ञान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
दरअसल, एक स्पेस स्टेशन जिसे ऑर्बिटल स्टेशन या ऑर्बिटल स्पेस स्टेशन भी कहा जाता है, वास्तव में एक अंतरिक्ष यान होता है, जो लंबे समय के लिए इंसानी यात्री को अंतरिक्ष में ठहरने की सुविधा देता है।
यानि कि यह एक अस्थायी घर होता है जहां पर हम जाकर रिसर्च करते हैं और अंतरिक्ष के बारे में नई नई चीजों की खोज करते हैं।
आसान शब्दों में कहें तो इसे एक प्रकार का अंतरिक्ष आवास भी कहा जा सकता है।
स्पेस स्टेशन के निर्माण का उद्देश्य क्या है?
अब कई लोगों के मन में यह सवाल आ रहा होगा कि अंतरिक्ष में आवास बनाने की जरूरत क्या थी? स्पेस स्टेशन के निर्माण का उद्देश्य क्या है?
इसके जवाब में कई वैज्ञानिक तर्क दिए जा सकते हैं। जैसे मानव शरीर पर अंतरिक्ष के वेटल ने इसका परीक्षण, अन्य ग्रहों की जानकारी लेना या स्पेस ट्रैवलिंग को मुमकिन बनाने का एक प्रयास।
लेकिन इन सभी तर्कों का मूल है जिज्ञासा। दोस्तों, अगर आपसे कहा जाए कि इस यूनिवर्स में हमारा अस्तित्व केवल धरती पर मौजूद एक छोटी चींटी से भी कम मायने रखता है।
तो शायद यह कहना बिल्कुल सही होगा और इसी तरह से अंतरिक्ष में छिपे हजारों रहस्यों को जानने के लिए स्पेस स्टेशन का निर्माण करना बहुत जरूरी था।
एक ऑर्बिटल स्टेशन को बनाए रखने का उद्देश्य कार्यक्रम के आधार पर भिन्न होता है। स्पेस स्टेशन को अक्सर वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए लॉन्च किया गया है, लेकिन बीते कुछ सालों में मिलिट्री लॉन्चेज भी हुए हैं।
1950 के दशक में जैसे ही अंतरिक्ष युग शुरू हुआ, अंतरिक्ष विमानों और स्टेशनों के डिजाइन मीडिया के बीच पॉपुलर हो गए। पहला अल्पविकसित स्टेशन 1969 में अंतरिक्ष में दो रशियन सोयुज वेहिकल को जोड़कर बनाया गया था।
उसके बाद 1984 में आईएसएस इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का निर्माण हुआ।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के निचले ऑर्बिट में नासा द्वारा निर्मित एक पूरी तरह से ऑपरेशनल और स्थाई रूप से बसावा स्पेस स्टेशन मौजूद है, जो कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन आईएसएस के नाम से जाना जाता है।
इसका इस्तेमाल मानव शरीर और अंतरिक्ष यान के प्रभाव का अध्ययन करने के साथ साथ कई स्पेस मिशन के और एस्ट्रोनॉट को रहने का स्थान प्रदान करने के लिए किया जाता है।
इसे 15 देशों ने मिलकर बनाया है। दुनिया के सबसे बड़े स्टेशन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को इकट्ठा होने में 10 साल और 30 से अधिक मिशन लगे।
ये 15 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली पांच स्पेस एजेंसी के बीच वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग सहयोग का एक अभूतपूर्व परिणाम है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कितना बड़ा है?
आईएसएस यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन लगभग एक फुटबॉल मैदान के आकार का है, जिसका वजन करीब 460 टन है और यह पृथ्वी से 250 मील ऊपर अंतरिक्ष में परिक्रमा करता है।
कभी कभी है 450 मील के अंतराल पर भी पहुंचाता है। इसे मानव इतिहास की सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर भी देखा जाता है।
अब सवाल उठता है कि इतना विशाल और वजनदार स्पेसक्राफ्ट स्टेशन अंतरिक्ष में भेजा कैसे गया?
स्पेसक्राफ्ट स्टेशन अंतरिक्ष में भेजा कैसे गया?
किसी साधारण स्पेसक्राफ्ट की तरह स्पेस स्टेशन को अंतरिक्ष में भेजना बिल्कुल भी आसान नहीं होता। पृथ्वी पर स्पेस स्टेशन बनाना और फिर उसे एक ही बार में अंतरिक्ष में लॉन्च करना असंभव है।
ऐसे रॉकेट का निर्माण आज तक नहीं हुआ जो कि इतने विशाल स्पेस स्टेशन का भार उठा सके। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को पृथ्वी के लोअर ऑर्बिट तक पहुंचाने में भी एक समस्या थी।
हालांकि इस समस्या को दूर करने के लिए स्पेस स्टेशन को अंतरिक्ष में अलग अलग हिस्सों में लॉन्च किया गया और धीरे धीरे ऑर्बिट में स्थापित किया गया, जोकि पृथ्वी की सतह से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को असेंबल करने की प्रक्रिया 1990 के दशक से चल रही है। अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन को जरूरी सपोर्ट सिस्टम देने के लिए समय के साथ साथ स्पेस मॉड्यूल और अंतरिक्ष में भेजा जाता है।
अंतरिक्ष में स्पेस स्टेशन को जरूरी सपोर्ट सिस्टम देने के लिए समय के साथ साथ मटेरियल को अंतरिक्ष में भेजा जाता।
20 नवंबर 1998 में एक प्रोटोन रॉकेट द्वारा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के पहले मॉड्यूल जारिया को लॉन्च किया गया था।
जाहिर है कि लॉन्च होने के दो सप्ताह बाद एसटीएस स्पेस शटल मिशन में यूनिटी को लगाया गया, जो तीन नॉट मॉड्यूल से बना हुआ था और इसे झारिया से जोड़ा गया था।
इस बीच कई और मॉड्यूल स्पेस में लॉन्च किए गए जो कि निर्धारित अवधि में आईएसएस के साथ जुड़ते गए। पूरे स्पेस स्टेशन के निर्माण के लिए 40 से ज्यादा असेंबली उड़ानों की जरूरत थी।
दो हज़ार 20 तक 36 स्पेस शटल उड़ानों के द्वारा आईएसएस एलिमेंट्स को स्पेस में डिलीवर किया गया। किसी भी स्टेशन को अपनी ऑर्बिट में बने रहना बहुत ज़रूरी होता है।
स्पेस स्टेशन अपने ऑर्बिट में लंबे समय तक कैसे रहते हैं?
अब जानते हैं स्पेस स्टेशन अपने ऑर्बिट में लंबे समय तक कैसे रहते हैं और वो गिरते क्यों नहीं। स्पेस स्टेशन के हिस्सों को रॉकेट की मदद से ऑर्बिट में लाया जाता है।
ऑर्बिट में पहुंचने और वहां बने रहने के लिए स्पेस स्टेशन को एक निश्चित गति की आवश्यकता होती है।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर ऑर्बिट में लगभग 17 हज़ार 105 मील प्रतिघंटा यानि तकरीबन पाँच मील प्रति सेकेंड की स्पीड से ट्रैवल करता है।
इसका मतलब ये हुआ कि स्पेस स्टेशन हर बयान व मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेता है और इसी अंतराल में वह हर तीन घंटे में सूर्योदय होते देखता है।
स्पेस स्टेशन धरती पर क्यों नहीं गिरते?
स्पेस स्टेशन धरती पर क्यों नहीं गिरते, यह समझने के लिए आईएसएस जैसे स्पेस स्टेशन अंतरिक्ष में कैसे रहते हैं, हमें उस पर लगने वाले फोर्स के बारे में जानने की जरूरत है।
आप फोर्स को नहीं देख सकते, लेकिन आप इसे महसूस कर सकते हैं। फोर्स लगने से कोई भी चीज मोशन में आ सकती है और यही फोर्स गतिमान चीज़ को रोक भी सकता है।
आपने न्यूटन का लॉ तो पढ़ा होगा कि जब तक किसी चीज़ को रोका ना जाए वह अपनी गति में न बदलाव करती है और न ही रुकती है।
स्पेस स्टेशन को अपने स्थान पर बनाए रखने के लिए दो अलग अलग फोर्सेज काम करते हैं। पहला है गुरुत्वाकर्षण यानी ग्रेविटी जो कि उन चीजों पर लगती है जिसका वजन होता है।
जो चीजें बहुत बाहरी होती हैं जैसे कि ग्रह एक फोर्स बनाते हैं जो कि छोटी चीजों को अपनी ओर आकर्षित करती है या उन्हें खींचती है जैसेकि हमारी धरती का गुरुत्वाकर्षण बल इसी वजह से हम सभी आकाश में नहीं तैरते और जब हम हवा में कूदते हैं तो फिर से नीचे गिर जाते हैं क्योंकि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण हमेशा हमें जमीन पर खींच रहा होता है।
जब एस्ट्रोनॉट पृथ्वी से दूर जाते हैं तब वे स्पेस में तैरते हैं क्योंकि वे धरती के ग्रेविटेशनल पुल को एस्केप कर चुके होते हैं। तो फिर ग्रेविटी स्पेस स्टेशन को वापस धरती पर क्यों नहीं खीचते?
ग्रेविटी स्पेस स्टेशन को वापस धरती पर क्यों नहीं खीचते?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको एक दूसरे फोर्स के बारे में जानना होगा, जिसे सेंट्रल फिगर्स फोर्स कहते हैं।
दरअसल जब चीजें एक घेरे में घूमती हैं तो सेंटर ऑफ इगल फोर्स उन्हें घेरे से बाहर तक हिलता है।
हम सभी ने अनजाने में ही सही लेकिन सेंट्रल फोर्स को ज़रूर अनुभव किया है।
जैसे जब आपके पास में कोई गोल चक्कर या हिंडोला झूलें पीछे से धकेला जाता है तब यह सेंटर वीइकल फोर्स को महसूस कर सकते हैं।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जैसे स्पेस स्टेशन पर निर्धारित गति से पृथ्वी की ओर चक्कर लगाते हैं, जिसे दूर धकेलने वाला सेंटर सिगल फोर्स है।
ठीक उतना ही होता है जितना के से अंदर खींचने वाला ग्रेविटेशनल फोर्स। दोनों फोर्स के बीच बने इस बैलेंस को स्टेबल ऑर्बिट कहते हैं।
जब तक इसके साथ बदलाव न किया जाये या रोका न जाये ये इसी तरह अंतरिक्ष में तैरता रहेगा| और इसी वजेसे बड़े बड़े स्पेस स्टेशन आपने ऑर्बिट में चक्कर लगाते है|
और अन्तरिक्ष से स्पेस स्टेशन नही गिरते| जब astronot स्पेस स्टेशन से वापस लौटते है तो वह छोटी कैप्सूल में आते है जिसमे 3 से ज्यादा नहीं आ सकते |
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